गोली लगने के बाद वे वहीं पर गिर पड़े थे. आनन फानन में उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन उनकी जान बचाई नहीं जा सकी.राजनैतिक जीवन से लेकर विवादो तक खूब चर्चा में रहे और अपने देश में हमेशा एक राष्ट्रवादी की छवि के साथ सत्ता पर काबिज रहे.
राजनैतिक जीवन शिंजो आबे पूर्व विदेश मंत्री शिंटारो आबे के बेटे और पूर्व प्रधान मंत्री नोबुसुके किशी के पोते हैं यानी वे सीधे तौर पर एक राजनैतिक घराने से आते हैं. आबे पहली बार 1993 में जापान की संसद के लिए चुने गए थे और 2005 में वे कैबिनेट सदस्य बने. इस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री जुनिचिरो कोइज़ुमी ने उन्हें मुख्य कैबिनेट सचिव नियुक्त किया था. वे 2006 में जापान के सबसे कम उम्र के प्रधान मंत्री बने थे.इसके बाद साल 2007 में उनकी सरकार पर भ्रष्टारार और घोटाले के आरोप लगे जिसके बाद उन्हें चुनावों में भारी नुकसान हुआ. इसा साल उन्होंने बीमारी के चलते पीएम पद से इस्तीफा दे दिया. 2012 में बीमारी ठीक हुई तो फिर से प्रधानमंत्री बने. बाद में वे 2014 और 2017 में फिर से चुने गए. इस तरह वे जापान के सबसे लंबे समय तक रहने वाले प्रधानमंत्री बने.
एक विवादित राष्ट्रवादी शिंजो आबे रक्षा और विदेश नीति पर अपने कठोर रुख के लिए जाने जाते हैं और लंबे समय से जापान के संविधान में संशोधन करने की मांग कर रहे थे. उनके राष्ट्रवादी विचारों ने अक्सर चीन और दक्षिण कोरिया के साथ तनाव बढ़ाया है. विशेष रूप से टोक्यो के यासुकुनी मंदिर की 2013 की उनकी यात्रा के बाद.2015 में उन्होंने सामूहिक आत्मरक्षा के अधिकार पर खूब जोर दिया. इससे जिससे जापान अपने और सहयोगियों की रक्षा के लिए विदेशों में सैनिक जुटाने में सक्षम हो गया. जापान के पड़ोसियों और यहां तक कि जापानी जनता के विरोध के बावजूद, जापान की संसद ने इस विवादास्पद बदलाव को मंजूरी दी थी.जापान की सेना को औपचारिक रूप से मान्यता देने के लिए संविधान को संशोधित करने का उनका बड़ा लक्ष्य अभी अधूरा है और जापान में एक विवादित विषय बना हुआ है.
इस्तीफाअगस्त 2020 की शुरुआत में शिंजो आबे के स्वास्थ्य के बारे में अफवाहें फैलने लगीं, जब साप्ताहिक पत्रिका फ्लैश ने बताया कि उन्होंने अपने कार्यालय में खून की उल्टी की थी. मुख्य कैबिनेट सचिव योशीहिदे सुगा ने शुरू में रिपोर्ट का खंडन किया था, लेकिन टोक्यो के कीओ विश्वविद्यालय अस्पताल में जांच के बाद अटकलें तेज हो गईं.इसके बाद उनके इस्तीफे की घोषणा ने अफवाहों पर विराम लगा दिया, लेकिन इससे एलडीपी गुटों के बीच आंतरिक संघर्ष शुरू हो गया, वे आबे का उत्तराधिकारी नहीं चुन पा रहे थे. अंत में वे योशीहिदे सुगाके नाम पर मुंहर लगा पाए. इस प्रकार सुगा जापान के अगले प्रधान मंत्री बने.